जिंदगी तुझे हासिल ना कर सके हम
तू गुजरती गयी और तुझे जी ना सके हम
खोकर खुद को उसकी तलाश में रहा
खुद से भी गए उसे भी ना पा सके हम
ख्वाबों का कोई वुजूद कभी रहा ही नहीं
ये हक़ीक़त खुली तो फिर ना सो सके हम
माँ पूछती रही सबब मेरे उतरे चेहरे का
क्या कहता, बस कुछ ना कह सके हम
भटकता रहा उम्र भर ना-हासिल के लिए
जो हासिल था उसे भी ना बचा सके हम
खर्च किया वक्त को फिजूल के कामों में
खुद के लिए एक पल भी ना रख सके हम
खुद तो खड़े ही रहे धूप में हमेशा
औरों के लिए एक दरख्त भी ना लगा सके हम
मरने से मेरे दुश्मन भी ख़फ़ा हैं
ना ढंग से जिए ना ढंग से मर सके हम।।
तू गुजरती गयी और तुझे जी ना सके हम
खोकर खुद को उसकी तलाश में रहा
खुद से भी गए उसे भी ना पा सके हम
ख्वाबों का कोई वुजूद कभी रहा ही नहीं
ये हक़ीक़त खुली तो फिर ना सो सके हम
माँ पूछती रही सबब मेरे उतरे चेहरे का
क्या कहता, बस कुछ ना कह सके हम
भटकता रहा उम्र भर ना-हासिल के लिए
जो हासिल था उसे भी ना बचा सके हम
खर्च किया वक्त को फिजूल के कामों में
खुद के लिए एक पल भी ना रख सके हम
खुद तो खड़े ही रहे धूप में हमेशा
औरों के लिए एक दरख्त भी ना लगा सके हम
मरने से मेरे दुश्मन भी ख़फ़ा हैं
ना ढंग से जिए ना ढंग से मर सके हम।।