ज़रा देखना
तस्वीर का एक कोना
फटा मालूम पड़ता है,
एक चेहरा ग़ायब है
बिलकुल ऐसे ही मुस्कुराता था,
बिलकुल ऐसे ही
बेफिक्र मौजों कि तरह
छलकता, उछलता
साहिल से शरारतें करता
यहीं कहीं होगा,
शहरी हो गया तो क्या हुआ
थोड़ा प्यार थोड़ी दोस्ती
उसमे अभी बाकी होगी,
शायद रूठ कर
कहीं दूर निकल गया होगा,
पर
नदियां जो भी रुख इख्त्यार करें
जितनी भी मनचली हों
इक दूजे से जितनी भी दूर दूर रहे
समंदर में जब कूदती हैं,
एक रंग, एक लहर,
एक बूँद हो जाती हैं,
बस उसी का इंतज़ार है,
वैसे भी रास्तों को नापते अरसा हो गया,
अंदाजा ही नहीं,
घर से कितनी दूर निकल आये हैं,
कहीं जाकर अब ठहरना है,
समंदर के बीचो बीच,
सीलन वाली चट्टान पर बैठ कर बातें करेंगे
जहाँ पर फिसल कर घिरने में भी
साथ छूटने का डर नहीं होगा,
वहीँ तुम अपनी शिकायत करना
वहीँ मैं अपने जवाब दूंगा....!!
तस्वीर का एक कोना
फटा मालूम पड़ता है,
एक चेहरा ग़ायब है
बिलकुल ऐसे ही मुस्कुराता था,
बिलकुल ऐसे ही
बेफिक्र मौजों कि तरह
छलकता, उछलता
साहिल से शरारतें करता
यहीं कहीं होगा,
शहरी हो गया तो क्या हुआ
थोड़ा प्यार थोड़ी दोस्ती
उसमे अभी बाकी होगी,
शायद रूठ कर
कहीं दूर निकल गया होगा,
पर
नदियां जो भी रुख इख्त्यार करें
जितनी भी मनचली हों
इक दूजे से जितनी भी दूर दूर रहे
समंदर में जब कूदती हैं,
एक रंग, एक लहर,
एक बूँद हो जाती हैं,
बस उसी का इंतज़ार है,
वैसे भी रास्तों को नापते अरसा हो गया,
अंदाजा ही नहीं,
घर से कितनी दूर निकल आये हैं,
कहीं जाकर अब ठहरना है,
समंदर के बीचो बीच,
सीलन वाली चट्टान पर बैठ कर बातें करेंगे
जहाँ पर फिसल कर घिरने में भी
साथ छूटने का डर नहीं होगा,
वहीँ तुम अपनी शिकायत करना
वहीँ मैं अपने जवाब दूंगा....!!