रूठ जाता हूँ मैं खुद से खुद ही मान जाता हूँ
अब कहाँ मैं किसी से कोई उम्मीद लगता हूँ
टूट जाती हूँ मैं खुद से खुद ही सँवरजाता हूँ
बिखरे हुए सपने सारे मैं खुद समेट लाता हूँ
रोज़ बिछा लेता हूँ शतरंज खुद ही खेल जाता हूँ
जीत जाता हूँ कभी मैं कभी खुद से हार जाता हूँ
हंसता हूँ मैं अपनी शय पर खुद ही मात खाता हूँ
जिंदगी तेरी हर पहेली दोस्त बनकर सुलझाता हूँ
मैं अपनी प्रेरणा स्वयं हूं!
मैं वह विषय हूं जिसे मैं सबसे अच्छी तरह जानता हूं,
जिस विषय को मैं बेहतर बनाना चाहता हूं..!
अब कहाँ मैं किसी से कोई उम्मीद लगता हूँ
टूट जाती हूँ मैं खुद से खुद ही सँवरजाता हूँ
बिखरे हुए सपने सारे मैं खुद समेट लाता हूँ
रोज़ बिछा लेता हूँ शतरंज खुद ही खेल जाता हूँ
जीत जाता हूँ कभी मैं कभी खुद से हार जाता हूँ
हंसता हूँ मैं अपनी शय पर खुद ही मात खाता हूँ
जिंदगी तेरी हर पहेली दोस्त बनकर सुलझाता हूँ
मैं अपनी प्रेरणा स्वयं हूं!
मैं वह विषय हूं जिसे मैं सबसे अच्छी तरह जानता हूं,
जिस विषय को मैं बेहतर बनाना चाहता हूं..!