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बेटी
बेटा है कुल दीपक,
जिससे होता एक घर रौशन ।
दो कुल की रोशनी जिससे,
बेटी है घर की रौनक।
सुन लो ऐ दुनिया वालो,
बेटी बोझ नहीं होती,
समझे जो लोग बेटा-बेटी को सामान ,
उनकी निम्न सोच नहीं होती।
बेटा है लाठी बुढ़ापे की,
बस कहने को,
बेटी है वास्तव में
सहारा माता-पिता का।
बेटा अगर है अभिमान,
बेटी गुरुर है माता-पिता का।
बेटे अगर हैं माता-पिता की आँखें ,
तो बेटी उनकी नाक(प्रतिष्ठा) है।
बेटे तो मात्र एक घर /कूल की शान है ।
मगर बेटी दोनों कूलों (ससुराल-पक्ष व् मायका पक्ष ) दोनों की शान हैं।
बेटी होती है पराया धन,
मगर “अपने” बेटे से कहीं अधिक,
अपना होता है वोह पराया धन।
पास रहकर भी जो बेटा,
माता-पिता के कष्टों से रहे अनजान।
मगर सौ कौस की दूरी से भी माता-पिता ,
में जिसके बसते हैं प्राण।
माता-पिता व् बेटी के जुड़े रहे एक तार से मन ,
ऐसी आत्मीयता ,
ऐसी घनिष्ठता सिर्फ एक बेटी ही दे सकती है।
बेटा है कुल दीपक,
जिससे होता एक घर रौशन ।
दो कुल की रोशनी जिससे,
बेटी है घर की रौनक।
सुन लो ऐ दुनिया वालो,
बेटी बोझ नहीं होती,
समझे जो लोग बेटा-बेटी को सामान ,
उनकी निम्न सोच नहीं होती।
बेटा है लाठी बुढ़ापे की,
बस कहने को,
बेटी है वास्तव में
सहारा माता-पिता का।
बेटा अगर है अभिमान,
बेटी गुरुर है माता-पिता का।
बेटे अगर हैं माता-पिता की आँखें ,
तो बेटी उनकी नाक(प्रतिष्ठा) है।
बेटे तो मात्र एक घर /कूल की शान है ।
मगर बेटी दोनों कूलों (ससुराल-पक्ष व् मायका पक्ष ) दोनों की शान हैं।
बेटी होती है पराया धन,
मगर “अपने” बेटे से कहीं अधिक,
अपना होता है वोह पराया धन।
पास रहकर भी जो बेटा,
माता-पिता के कष्टों से रहे अनजान।
मगर सौ कौस की दूरी से भी माता-पिता ,
में जिसके बसते हैं प्राण।
माता-पिता व् बेटी के जुड़े रहे एक तार से मन ,
ऐसी आत्मीयता ,
ऐसी घनिष्ठता सिर्फ एक बेटी ही दे सकती है।