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कभी सोचा मां के बारे मैं

Yug Purush

Epic Legend
Senior's
Chat Pro User
अपनी सत्तर बरस की " माँ " को देखकर
क्या सोचा है कभी ...?

वो भी कभी कालेज में कुर्ती और ,
स्लैक्स पहन कर जाया करती थी..
तुम हरगिज़ नहीं सोच सकते .. कि

तुम्हारी "माँ" भी कभी घर के आँगन में
चहकती हुई, उधम मचाती दौड़ा करती थी ..तो
घर का कोना - कोना गुलज़ार हो उठता था...

किशोरावस्था में वो जब कभी
अपने गिलों बालों में तौलिया लपेटे
छत पर आती गुनगुनानी धूप में सुखाने जाती थी, तो ..
न जाने कितनी पतंगे आसमान में कटने लगती थी..
क्या सोचा है कभी ...?

अट्ठारह बरस की "माँ” ने
तुम्हारे चौबीस बरस के पिता को
जब वरमाला पहनाई, तो मारे लाज से
दोहरी होकर गठरी बन, अपने वर को
नज़र उठाकर भी नहीं देखा..

तुमने तो कभी ये भी नहीं सोचा होगा, कि
तुम्हारे आने की दस्तक देती उस
प्रसव पीड़ा के उठने पर
कैसे दाँतों पर दाँत रख
अस्पताल की चौखट पर गई होगी
क्या सोच सकते हो कभी ..?

अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि
तुम्हें मानकर अपनी सारी शैक्षणिक डिगरियाँ
जिस संदूक में अखबार के पन्नो में
लपेटकर ताला बंद की थी
उस संदूक की चाभी आज तक उसने नहीं ढूँढी...
और तुम
उसके झुर्रिदार काँपते हाथों, क्षीण याददाश्त,
कमजोर नज़र और झुकी हुई कमर को देखकर
उनसे कतराकर खुद पर इतराते हो
ये बरसों का सफ़र है ...!
तुम कभी सोच भी नहीं सकते।।♥️♥️
 
अपनी सत्तर बरस की " माँ " को देखकर
क्या सोचा है कभी ...?

वो भी कभी कालेज में कुर्ती और ,
स्लैक्स पहन कर जाया करती थी..
तुम हरगिज़ नहीं सोच सकते .. कि

तुम्हारी "माँ" भी कभी घर के आँगन में
चहकती हुई, उधम मचाती दौड़ा करती थी ..तो
घर का कोना - कोना गुलज़ार हो उठता था...

किशोरावस्था में वो जब कभी
अपने गिलों बालों में तौलिया लपेटे
छत पर आती गुनगुनानी धूप में सुखाने जाती थी, तो ..
न जाने कितनी पतंगे आसमान में कटने लगती थी..
क्या सोचा है कभी ...?

अट्ठारह बरस की "माँ” ने
तुम्हारे चौबीस बरस के पिता को
जब वरमाला पहनाई, तो मारे लाज से
दोहरी होकर गठरी बन, अपने वर को
नज़र उठाकर भी नहीं देखा..

तुमने तो कभी ये भी नहीं सोचा होगा, कि
तुम्हारे आने की दस्तक देती उस
प्रसव पीड़ा के उठने पर
कैसे दाँतों पर दाँत रख
अस्पताल की चौखट पर गई होगी
क्या सोच सकते हो कभी ..?

अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि
तुम्हें मानकर अपनी सारी शैक्षणिक डिगरियाँ
जिस संदूक में अखबार के पन्नो में
लपेटकर ताला बंद की थी
उस संदूक की चाभी आज तक उसने नहीं ढूँढी...
और तुम
उसके झुर्रिदार काँपते हाथों, क्षीण याददाश्त,
कमजोर नज़र और झुकी हुई कमर को देखकर
उनसे कतराकर खुद पर इतराते हो
ये बरसों का सफ़र है ...!
तुम कभी सोच भी नहीं सकते।।♥️♥️
Lovely :heart1:
 
अपनी सत्तर बरस की " माँ " को देखकर
क्या सोचा है कभी ...?

वो भी कभी कालेज में कुर्ती और ,
स्लैक्स पहन कर जाया करती थी..
तुम हरगिज़ नहीं सोच सकते .. कि

तुम्हारी "माँ" भी कभी घर के आँगन में
चहकती हुई, उधम मचाती दौड़ा करती थी ..तो
घर का कोना - कोना गुलज़ार हो उठता था...

किशोरावस्था में वो जब कभी
अपने गिलों बालों में तौलिया लपेटे
छत पर आती गुनगुनानी धूप में सुखाने जाती थी, तो ..
न जाने कितनी पतंगे आसमान में कटने लगती थी..
क्या सोचा है कभी ...?

अट्ठारह बरस की "माँ” ने
तुम्हारे चौबीस बरस के पिता को
जब वरमाला पहनाई, तो मारे लाज से
दोहरी होकर गठरी बन, अपने वर को
नज़र उठाकर भी नहीं देखा..

तुमने तो कभी ये भी नहीं सोचा होगा, कि
तुम्हारे आने की दस्तक देती उस
प्रसव पीड़ा के उठने पर
कैसे दाँतों पर दाँत रख
अस्पताल की चौखट पर गई होगी
क्या सोच सकते हो कभी ..?

अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि
तुम्हें मानकर अपनी सारी शैक्षणिक डिगरियाँ
जिस संदूक में अखबार के पन्नो में
लपेटकर ताला बंद की थी
उस संदूक की चाभी आज तक उसने नहीं ढूँढी...
और तुम
उसके झुर्रिदार काँपते हाथों, क्षीण याददाश्त,
कमजोर नज़र और झुकी हुई कमर को देखकर
उनसे कतराकर खुद पर इतराते हो
ये बरसों का सफ़र है ...!
तुम कभी सोच भी नहीं सकते।।♥️♥️
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अपनी सत्तर बरस की " माँ " को देखकर
क्या सोचा है कभी ...?

वो भी कभी कालेज में कुर्ती और ,
स्लैक्स पहन कर जाया करती थी..
तुम हरगिज़ नहीं सोच सकते .. कि

तुम्हारी "माँ" भी कभी घर के आँगन में
चहकती हुई, उधम मचाती दौड़ा करती थी ..तो
घर का कोना - कोना गुलज़ार हो उठता था...

किशोरावस्था में वो जब कभी
अपने गिलों बालों में तौलिया लपेटे
छत पर आती गुनगुनानी धूप में सुखाने जाती थी, तो ..
न जाने कितनी पतंगे आसमान में कटने लगती थी..
क्या सोचा है कभी ...?

अट्ठारह बरस की "माँ” ने
तुम्हारे चौबीस बरस के पिता को
जब वरमाला पहनाई, तो मारे लाज से
दोहरी होकर गठरी बन, अपने वर को
नज़र उठाकर भी नहीं देखा..

तुमने तो कभी ये भी नहीं सोचा होगा, कि
तुम्हारे आने की दस्तक देती उस
प्रसव पीड़ा के उठने पर
कैसे दाँतों पर दाँत रख
अस्पताल की चौखट पर गई होगी
क्या सोच सकते हो कभी ..?

अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि
तुम्हें मानकर अपनी सारी शैक्षणिक डिगरियाँ
जिस संदूक में अखबार के पन्नो में
लपेटकर ताला बंद की थी
उस संदूक की चाभी आज तक उसने नहीं ढूँढी...
और तुम
उसके झुर्रिदार काँपते हाथों, क्षीण याददाश्त,
कमजोर नज़र और झुकी हुई कमर को देखकर
उनसे कतराकर खुद पर इतराते हो
ये बरसों का सफ़र है ...!
तुम कभी सोच भी नहीं सकते।।♥️♥️
Bahut Hi Badhiya ..!! Emotional ho gaya padh ke, bilkul sach byaan kiye ho...!! ♥
 
अपनी सत्तर बरस की " माँ " को देखकर
क्या सोचा है कभी ...?

वो भी कभी कालेज में कुर्ती और ,
स्लैक्स पहन कर जाया करती थी..
तुम हरगिज़ नहीं सोच सकते .. कि

तुम्हारी "माँ" भी कभी घर के आँगन में
चहकती हुई, उधम मचाती दौड़ा करती थी ..तो
घर का कोना - कोना गुलज़ार हो उठता था...

किशोरावस्था में वो जब कभी
अपने गिलों बालों में तौलिया लपेटे
छत पर आती गुनगुनानी धूप में सुखाने जाती थी, तो ..
न जाने कितनी पतंगे आसमान में कटने लगती थी..
क्या सोचा है कभी ...?

अट्ठारह बरस की "माँ” ने
तुम्हारे चौबीस बरस के पिता को
जब वरमाला पहनाई, तो मारे लाज से
दोहरी होकर गठरी बन, अपने वर को
नज़र उठाकर भी नहीं देखा..

तुमने तो कभी ये भी नहीं सोचा होगा, कि
तुम्हारे आने की दस्तक देती उस
प्रसव पीड़ा के उठने पर
कैसे दाँतों पर दाँत रख
अस्पताल की चौखट पर गई होगी
क्या सोच सकते हो कभी ..?

अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि
तुम्हें मानकर अपनी सारी शैक्षणिक डिगरियाँ
जिस संदूक में अखबार के पन्नो में
लपेटकर ताला बंद की थी
उस संदूक की चाभी आज तक उसने नहीं ढूँढी...
और तुम
उसके झुर्रिदार काँपते हाथों, क्षीण याददाश्त,
कमजोर नज़र और झुकी हुई कमर को देखकर
उनसे कतराकर खुद पर इतराते हो
ये बरसों का सफ़र है ...!
तुम कभी सोच भी नहीं सकते।।♥️♥️
Lovely bro and on this note I would like to post a song.
 
अपनी सत्तर बरस की " माँ " को देखकर
क्या सोचा है कभी ...?

वो भी कभी कालेज में कुर्ती और ,
स्लैक्स पहन कर जाया करती थी..
तुम हरगिज़ नहीं सोच सकते .. कि

तुम्हारी "माँ" भी कभी घर के आँगन में
चहकती हुई, उधम मचाती दौड़ा करती थी ..तो
घर का कोना - कोना गुलज़ार हो उठता था...

किशोरावस्था में वो जब कभी
अपने गिलों बालों में तौलिया लपेटे
छत पर आती गुनगुनानी धूप में सुखाने जाती थी, तो ..
न जाने कितनी पतंगे आसमान में कटने लगती थी..
क्या सोचा है कभी ...?

अट्ठारह बरस की "माँ” ने
तुम्हारे चौबीस बरस के पिता को
जब वरमाला पहनाई, तो मारे लाज से
दोहरी होकर गठरी बन, अपने वर को
नज़र उठाकर भी नहीं देखा..

तुमने तो कभी ये भी नहीं सोचा होगा, कि
तुम्हारे आने की दस्तक देती उस
प्रसव पीड़ा के उठने पर
कैसे दाँतों पर दाँत रख
अस्पताल की चौखट पर गई होगी
क्या सोच सकते हो कभी ..?

अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि
तुम्हें मानकर अपनी सारी शैक्षणिक डिगरियाँ
जिस संदूक में अखबार के पन्नो में
लपेटकर ताला बंद की थी
उस संदूक की चाभी आज तक उसने नहीं ढूँढी...
और तुम
उसके झुर्रिदार काँपते हाथों, क्षीण याददाश्त,
कमजोर नज़र और झुकी हुई कमर को देखकर
उनसे कतराकर खुद पर इतराते हो
ये बरसों का सफ़र है ...!
तुम कभी सोच भी नहीं सकते।।♥️♥️
Bahut khub

:heart1: main to roj sochti hu

Maa bhi to kisiki beti thi
Har kisi ko najar na aasake
Isliye khuda ne dharti p
har kisi k liye maa bheji thi
 
Last edited:
अपनी सत्तर बरस की " माँ " को देखकर
क्या सोचा है कभी ...?

वो भी कभी कालेज में कुर्ती और ,
स्लैक्स पहन कर जाया करती थी..
तुम हरगिज़ नहीं सोच सकते .. कि

तुम्हारी "माँ" भी कभी घर के आँगन में
चहकती हुई, उधम मचाती दौड़ा करती थी ..तो
घर का कोना - कोना गुलज़ार हो उठता था...

किशोरावस्था में वो जब कभी
अपने गिलों बालों में तौलिया लपेटे
छत पर आती गुनगुनानी धूप में सुखाने जाती थी, तो ..
न जाने कितनी पतंगे आसमान में कटने लगती थी..
क्या सोचा है कभी ...?

अट्ठारह बरस की "माँ” ने
तुम्हारे चौबीस बरस के पिता को
जब वरमाला पहनाई, तो मारे लाज से
दोहरी होकर गठरी बन, अपने वर को
नज़र उठाकर भी नहीं देखा..

तुमने तो कभी ये भी नहीं सोचा होगा, कि
तुम्हारे आने की दस्तक देती उस
प्रसव पीड़ा के उठने पर
कैसे दाँतों पर दाँत रख
अस्पताल की चौखट पर गई होगी
क्या सोच सकते हो कभी ..?

अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि
तुम्हें मानकर अपनी सारी शैक्षणिक डिगरियाँ
जिस संदूक में अखबार के पन्नो में
लपेटकर ताला बंद की थी
उस संदूक की चाभी आज तक उसने नहीं ढूँढी...
और तुम
उसके झुर्रिदार काँपते हाथों, क्षीण याददाश्त,
कमजोर नज़र और झुकी हुई कमर को देखकर
उनसे कतराकर खुद पर इतराते हो
ये बरसों का सफ़र है ...!
तुम कभी सोच भी नहीं सकते।।♥️♥️
Thank you .
 
अपनी सत्तर बरस की " माँ " को देखकर
क्या सोचा है कभी ...?

वो भी कभी कालेज में कुर्ती और ,
स्लैक्स पहन कर जाया करती थी..
तुम हरगिज़ नहीं सोच सकते .. कि

तुम्हारी "माँ" भी कभी घर के आँगन में
चहकती हुई, उधम मचाती दौड़ा करती थी ..तो
घर का कोना - कोना गुलज़ार हो उठता था...

किशोरावस्था में वो जब कभी
अपने गिलों बालों में तौलिया लपेटे
छत पर आती गुनगुनानी धूप में सुखाने जाती थी, तो ..
न जाने कितनी पतंगे आसमान में कटने लगती थी..
क्या सोचा है कभी ...?

अट्ठारह बरस की "माँ” ने
तुम्हारे चौबीस बरस के पिता को
जब वरमाला पहनाई, तो मारे लाज से
दोहरी होकर गठरी बन, अपने वर को
नज़र उठाकर भी नहीं देखा..

तुमने तो कभी ये भी नहीं सोचा होगा, कि
तुम्हारे आने की दस्तक देती उस
प्रसव पीड़ा के उठने पर
कैसे दाँतों पर दाँत रख
अस्पताल की चौखट पर गई होगी
क्या सोच सकते हो कभी ..?

अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि
तुम्हें मानकर अपनी सारी शैक्षणिक डिगरियाँ
जिस संदूक में अखबार के पन्नो में
लपेटकर ताला बंद की थी
उस संदूक की चाभी आज तक उसने नहीं ढूँढी...
और तुम
उसके झुर्रिदार काँपते हाथों, क्षीण याददाश्त,
कमजोर नज़र और झुकी हुई कमर को देखकर
उनसे कतराकर खुद पर इतराते हो
ये बरसों का सफ़र है ...!
तुम कभी सोच भी नहीं सकते।।♥️♥️
:angel:
 
Bahut khub

:heart1: main to roj sochti hu

Maa bhi to kisiki beti thi
Har kisi ko najar na aasake
Isliye khuda ne dharti p
har kisi k liye maa bheji thi


सफ़र की मुश्किलों को हाथ मलते मैंने देखा है...
मुझे मालूम है मां की दुआएं साथ चलती हैं,
सफ़र की मुश्किलों को हाथ मलते मैंने देखा है
 
अपनी सत्तर बरस की " माँ " को देखकर
क्या सोचा है कभी ...?

वो भी कभी कालेज में कुर्ती और ,
स्लैक्स पहन कर जाया करती थी..
तुम हरगिज़ नहीं सोच सकते .. कि

तुम्हारी "माँ" भी कभी घर के आँगन में
चहकती हुई, उधम मचाती दौड़ा करती थी ..तो
घर का कोना - कोना गुलज़ार हो उठता था...

किशोरावस्था में वो जब कभी
अपने गिलों बालों में तौलिया लपेटे
छत पर आती गुनगुनानी धूप में सुखाने जाती थी, तो ..
न जाने कितनी पतंगे आसमान में कटने लगती थी..
क्या सोचा है कभी ...?

अट्ठारह बरस की "माँ” ने
तुम्हारे चौबीस बरस के पिता को
जब वरमाला पहनाई, तो मारे लाज से
दोहरी होकर गठरी बन, अपने वर को
नज़र उठाकर भी नहीं देखा..

तुमने तो कभी ये भी नहीं सोचा होगा, कि
तुम्हारे आने की दस्तक देती उस
प्रसव पीड़ा के उठने पर
कैसे दाँतों पर दाँत रख
अस्पताल की चौखट पर गई होगी
क्या सोच सकते हो कभी ..?

अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि
तुम्हें मानकर अपनी सारी शैक्षणिक डिगरियाँ
जिस संदूक में अखबार के पन्नो में
लपेटकर ताला बंद की थी
उस संदूक की चाभी आज तक उसने नहीं ढूँढी...
और तुम
उसके झुर्रिदार काँपते हाथों, क्षीण याददाश्त,
कमजोर नज़र और झुकी हुई कमर को देखकर
उनसे कतराकर खुद पर इतराते हो
ये बरसों का सफ़र है ...!
तुम कभी सोच भी नहीं सकते।।♥️♥️
Ati sundar bro
 
अपनी सत्तर बरस की " माँ " को देखकर
क्या सोचा है कभी ...?

वो भी कभी कालेज में कुर्ती और ,
स्लैक्स पहन कर जाया करती थी..
तुम हरगिज़ नहीं सोच सकते .. कि

तुम्हारी "माँ" भी कभी घर के आँगन में
चहकती हुई, उधम मचाती दौड़ा करती थी ..तो
घर का कोना - कोना गुलज़ार हो उठता था...

किशोरावस्था में वो जब कभी
अपने गिलों बालों में तौलिया लपेटे
छत पर आती गुनगुनानी धूप में सुखाने जाती थी, तो ..
न जाने कितनी पतंगे आसमान में कटने लगती थी..
क्या सोचा है कभी ...?

अट्ठारह बरस की "माँ” ने
तुम्हारे चौबीस बरस के पिता को
जब वरमाला पहनाई, तो मारे लाज से
दोहरी होकर गठरी बन, अपने वर को
नज़र उठाकर भी नहीं देखा..

तुमने तो कभी ये भी नहीं सोचा होगा, कि
तुम्हारे आने की दस्तक देती उस
प्रसव पीड़ा के उठने पर
कैसे दाँतों पर दाँत रख
अस्पताल की चौखट पर गई होगी
क्या सोच सकते हो कभी ..?

अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि
तुम्हें मानकर अपनी सारी शैक्षणिक डिगरियाँ
जिस संदूक में अखबार के पन्नो में
लपेटकर ताला बंद की थी
उस संदूक की चाभी आज तक उसने नहीं ढूँढी...
और तुम
उसके झुर्रिदार काँपते हाथों, क्षीण याददाश्त,
कमजोर नज़र और झुकी हुई कमर को देखकर
उनसे कतराकर खुद पर इतराते हो
ये बरसों का सफ़र है ...!
तुम कभी सोच भी नहीं सकते।।♥️♥️
सोचा है मां के बारे में...

पर वो सोच से परे है
कहूं तो खुद एक सोच है
हमें कुछ चाहिए ना
वो जान जाती है,
दुखी मन भी झट पहचान जाती है।
जादूगर जैसी है वो
सारे दुख गायब कर देती है
खुशियों की दुकान है वो
सारे सुख मेरी झोली में भर देती है।

ऐसा बहुत कुछ है मां के बारे में
जो भगवान भी ना कर पाए
वो तो, वो भी कर देती है।

हां, सोचा है मां के बारे में...
 
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