कभी तुम भी तो सोचो ना....
सुनो स्त्री.... तुम्हारे लिए कितना आसान है ना किसी भी पुरुष को पत्थर या पत्थर दिल कह देना, कभी इस बात पर गौर किया है कि तुम मोम और वह पत्थर क्यों हैं??... आखिर जब तुम रोती हो अंगार लावा जैसे तुम्हारे आंसू निकलते हैं... तो पत्थर की छाती ही है जो तुम्हें अपने से लगाकर शीतल करती है, एक पुरुष पत्थर हो सकता है पर एक पिता एक सच्चा प्रेमी कभी नहीं।
कभी यूं भी तो सोचो कि क्या वह सच में पत्थर है??? या पत्थर बनना पड़ता है, गर वो भी बात बात पर आंसू बहाने लगे तो तुम्हें कौन सहारा देगा???... तुम्हारे आंसू कौन पोंछेगा??...उनके सीने में भी दिल है जैसे तुम्हारे,, उसमें भी स्पंदन होता है भावों का, जज्बातों का, कभी-कभी भावनाओं का ज्वार भाटा भी आता होगा... फिर भी वह शांत रहते हैं, क्योंकि उन्हें तुम्हारे प्रेम का आवलंबन बनना है।
सुनों स्त्री.... जब तुम टूट कर रोती हो तो पुरुष की पत्थर छाती ही है जो तुम्हारी पीड़ा से भारी वेदनाओं को संभालती हैं, तुम्हारे बह रहे आंसुओं को सोखती है, और वह पुरुष जिसे तुम पत्थर कहती हो तुम्हारे आंसू पोंछता हैं, प्रेम से तुम्हारे माथे को चूंम कर तुम्हारी सारी पीड़ाओं को हर लेने का प्रयास करता है,, तुम इसे अनदेखा कैसे कर सकती हो???..... दर्द उन्हें भी होता है पीड़ा उन्हें भी होती है, फर्क इतना है तुम बात बात पर रो लेती हो और ओ...बात बात हर भाव छुपा लेते हैं।।।
तुम कहती भी हो, और यही चाहती भी हो कि पुरुष बिन बोले सब कुछ समझ जाये... तो तुम क्यों उन्हें नहीं समझती हो???
कभी यूं भी तो हो कि, तुम भी तो
समझो ना
दोनों एक दूसरे के पूरक हो एक जैसे
सोचो ना
जो अब तक नहीं कहा ओ अब तो कह
दो ना
और अब कलम को विराम देते हुए आखिरी में यही कहना चाहूँगा।
सुनो स्त्री!!!
जिस दिन पुरुष फफक कर रो दिया
उस दिन तुम्हारा रोना व्यर्थ हो जाएगा
————-
अज्ञात
सुनो स्त्री.... तुम्हारे लिए कितना आसान है ना किसी भी पुरुष को पत्थर या पत्थर दिल कह देना, कभी इस बात पर गौर किया है कि तुम मोम और वह पत्थर क्यों हैं??... आखिर जब तुम रोती हो अंगार लावा जैसे तुम्हारे आंसू निकलते हैं... तो पत्थर की छाती ही है जो तुम्हें अपने से लगाकर शीतल करती है, एक पुरुष पत्थर हो सकता है पर एक पिता एक सच्चा प्रेमी कभी नहीं।
कभी यूं भी तो सोचो कि क्या वह सच में पत्थर है??? या पत्थर बनना पड़ता है, गर वो भी बात बात पर आंसू बहाने लगे तो तुम्हें कौन सहारा देगा???... तुम्हारे आंसू कौन पोंछेगा??...उनके सीने में भी दिल है जैसे तुम्हारे,, उसमें भी स्पंदन होता है भावों का, जज्बातों का, कभी-कभी भावनाओं का ज्वार भाटा भी आता होगा... फिर भी वह शांत रहते हैं, क्योंकि उन्हें तुम्हारे प्रेम का आवलंबन बनना है।
सुनों स्त्री.... जब तुम टूट कर रोती हो तो पुरुष की पत्थर छाती ही है जो तुम्हारी पीड़ा से भारी वेदनाओं को संभालती हैं, तुम्हारे बह रहे आंसुओं को सोखती है, और वह पुरुष जिसे तुम पत्थर कहती हो तुम्हारे आंसू पोंछता हैं, प्रेम से तुम्हारे माथे को चूंम कर तुम्हारी सारी पीड़ाओं को हर लेने का प्रयास करता है,, तुम इसे अनदेखा कैसे कर सकती हो???..... दर्द उन्हें भी होता है पीड़ा उन्हें भी होती है, फर्क इतना है तुम बात बात पर रो लेती हो और ओ...बात बात हर भाव छुपा लेते हैं।।।
तुम कहती भी हो, और यही चाहती भी हो कि पुरुष बिन बोले सब कुछ समझ जाये... तो तुम क्यों उन्हें नहीं समझती हो???
कभी यूं भी तो हो कि, तुम भी तो
समझो ना
दोनों एक दूसरे के पूरक हो एक जैसे
सोचो ना
जो अब तक नहीं कहा ओ अब तो कह
दो ना
और अब कलम को विराम देते हुए आखिरी में यही कहना चाहूँगा।
सुनो स्त्री!!!
जिस दिन पुरुष फफक कर रो दिया
उस दिन तुम्हारा रोना व्यर्थ हो जाएगा
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अज्ञात