एक सवाल है तुमसे ऐ मेरे मेहबूब माँगा ही क्या है मैंने ..तुमसे तुम्हारे निश्छल प्रेम के अलावा ना भविष्य माँगा ना शरीर ना ही पैसे...
फिर क्यूं दिल दुखाते हो तुम मेरा हर बार जब जब तुम्हारी कविताओं में किसी और की झलक दिखती है मुझे तुम लाख इंकार करो वो तुम्हारे हर शब्द में दिखती है मुझे चोट पहुँचती है मेरे दिल को ये सोचकर कि मेरा होना कितना अर्थहीन है तुम्हारे लिए फिर क्यूं हूं मैं तुम्हारी ज़िन्दगी में शिकायत नहीं करूँगी पर मैं टूट जाऊंगी फिर ना मिलेगी ये औरत तुम्हें जिसका मकसद सिर्फ तुम्हें ख़ुशी देना था
फिर क्यूं दिल दुखाते हो तुम मेरा हर बार जब जब तुम्हारी कविताओं में किसी और की झलक दिखती है मुझे तुम लाख इंकार करो वो तुम्हारे हर शब्द में दिखती है मुझे चोट पहुँचती है मेरे दिल को ये सोचकर कि मेरा होना कितना अर्थहीन है तुम्हारे लिए फिर क्यूं हूं मैं तुम्हारी ज़िन्दगी में शिकायत नहीं करूँगी पर मैं टूट जाऊंगी फिर ना मिलेगी ये औरत तुम्हें जिसका मकसद सिर्फ तुम्हें ख़ुशी देना था