अगर हक होता मुझे, तेरी तारीफ करने को
तो तेरे नाम पर शायरी नही एक किताब लिखता,
झील और समुन्द्र नही तेरी आंखों का नूर ए कायनात लिखता,
और कोयल को बोल नही तेरी आवाज़ को मैं अज़ान लिखता,
तेरे चेहरे की बस एक झलक को मैं जन्नत का दीदार लिखता,,
जो हक होता मुझे, तेरी तारीफ करने को,,
तेरे नाम से शायरी नही, एक पूरी किताब लिखता।।
तो तेरे नाम पर शायरी नही एक किताब लिखता,
झील और समुन्द्र नही तेरी आंखों का नूर ए कायनात लिखता,
और कोयल को बोल नही तेरी आवाज़ को मैं अज़ान लिखता,
तेरे चेहरे की बस एक झलक को मैं जन्नत का दीदार लिखता,,
जो हक होता मुझे, तेरी तारीफ करने को,,
तेरे नाम से शायरी नही, एक पूरी किताब लिखता।।