जिन्दगी के कुछ हसीन पल बनके आ गये ,
वो होठो पर मेरे गजल बनके आ गये ।।
मै तो खण्हर हो गया था जमाने के लिये ,
वो वाहो मै मेरी ताजमहल बनके आ गये ।।
कट रहा था सफर मेरा धूप मै चलते चलते,
वो राहों मै मेरी भीगे बादल बनके आ गये ।।
भूल चुका था मै शायद इश्क के अहसासो को,
वो दहलीज पर मेरी बीता कल बनके आ गये ।।
टूटे छत से बरस रही थी वूँदे तन्हायी की ,
वो सर्द रातो मै मेरी महल बनके आ गये ।।
मै भटक रहा था प्यासा रेगिस्तान मै अकेला,
वो हाथो मै मेरे मीठा जल बनके आ गये ।।
कई सबाल उठ खडे थे उनके जाने के बाद,
वो उन सारे सबालो का हल बनके आ गये ।।
एक तस्बीर मैने बनायी थी अपने हमसफर की,
वो हूँवहू उस तस्बीर की नकल बनके आ गये ।।
वो होठो पर मेरे गजल बनके आ गये ।।
मै तो खण्हर हो गया था जमाने के लिये ,
वो वाहो मै मेरी ताजमहल बनके आ गये ।।
कट रहा था सफर मेरा धूप मै चलते चलते,
वो राहों मै मेरी भीगे बादल बनके आ गये ।।
भूल चुका था मै शायद इश्क के अहसासो को,
वो दहलीज पर मेरी बीता कल बनके आ गये ।।
टूटे छत से बरस रही थी वूँदे तन्हायी की ,
वो सर्द रातो मै मेरी महल बनके आ गये ।।
मै भटक रहा था प्यासा रेगिस्तान मै अकेला,
वो हाथो मै मेरे मीठा जल बनके आ गये ।।
कई सबाल उठ खडे थे उनके जाने के बाद,
वो उन सारे सबालो का हल बनके आ गये ।।
एक तस्बीर मैने बनायी थी अपने हमसफर की,
वो हूँवहू उस तस्बीर की नकल बनके आ गये ।।