नई बातों में भी’ किस्सा पुराना ढूँढ लेता है,
वो’ अक्सर मुझसे’ लड़ने का बहाना ढूँढ लेता है।
उसे मालुम नहीं शायद ‘मेरी मजबूरियां क्या हैं,
वो’ अक्सर मेरे अश्कों का खज़ाना ढूँढ लेता है।
बहुत हैं दूरियां यूँ भी हमारे दरमियाँ लेकिन,
वो जब भी पास आता है ज़माना ढूँढ लेता है।
उसे आदत हुई है यूँ सभी का दिल दुखाने की,
कि वो हर जश्न में रोना- रुलाना ढूँढ लेता है।
लगाओगे नहीं दिल को बड़े मासूम हो तुम,
सुनो ये इश्क खुद अपना निशाना ढूँढ लेता है।
वो’ अक्सर मुझसे’ लड़ने का बहाना ढूँढ लेता है।
उसे मालुम नहीं शायद ‘मेरी मजबूरियां क्या हैं,
वो’ अक्सर मेरे अश्कों का खज़ाना ढूँढ लेता है।
बहुत हैं दूरियां यूँ भी हमारे दरमियाँ लेकिन,
वो जब भी पास आता है ज़माना ढूँढ लेता है।
उसे आदत हुई है यूँ सभी का दिल दुखाने की,
कि वो हर जश्न में रोना- रुलाना ढूँढ लेता है।
लगाओगे नहीं दिल को बड़े मासूम हो तुम,
सुनो ये इश्क खुद अपना निशाना ढूँढ लेता है।