उस चांद ने समझ ली है फितरत मेरी..
बेख़ौफ़ चला आता है अब तो रूबरू हमारे..
दिलों के हाल का मलाल रह जाता है..
अधूरी दस्तान तले कोई सिसकता अरमान रह जाता है..
रेत को शौक़ लगा होगा यूं किनारों पर रूकने का..
इन आंखों को चुभा होगा कोई ख्वाब महंगा सा..
तेरे शहर का जिक्र भला क्या अब मैं करता..
तू भले ही चुप थी मगर तेरे हर कूचे ने हमें रोका जरूर था..
तेरी आंखों में जो नमी है लगता है कहीं कोई तो कमी है..
सब तो दे दिया है तुझको लगता है तुझे शायद मेरी ही कमी है..
दिल गर बोल पाता तो क़यामत होती..
बेमतलब से जज्बातों की बड़ी यूं जुबान होती..
हम ही ठहरे हैं तेरे दिल में की निकलने से डरते हैं..
आप बात करना भी चाहो पर फिर भी हम मुकरते है..
तेरी आंखों में पढ़ लिया है अपना अंजाम मैंने..
अब हम जाना भी चाहे तब तू जाने नहीं देगी..
बेख़ौफ़ चला आता है अब तो रूबरू हमारे..
दिलों के हाल का मलाल रह जाता है..
अधूरी दस्तान तले कोई सिसकता अरमान रह जाता है..
रेत को शौक़ लगा होगा यूं किनारों पर रूकने का..
इन आंखों को चुभा होगा कोई ख्वाब महंगा सा..
तेरे शहर का जिक्र भला क्या अब मैं करता..
तू भले ही चुप थी मगर तेरे हर कूचे ने हमें रोका जरूर था..
तेरी आंखों में जो नमी है लगता है कहीं कोई तो कमी है..
सब तो दे दिया है तुझको लगता है तुझे शायद मेरी ही कमी है..
दिल गर बोल पाता तो क़यामत होती..
बेमतलब से जज्बातों की बड़ी यूं जुबान होती..
हम ही ठहरे हैं तेरे दिल में की निकलने से डरते हैं..
आप बात करना भी चाहो पर फिर भी हम मुकरते है..
तेरी आंखों में पढ़ लिया है अपना अंजाम मैंने..
अब हम जाना भी चाहे तब तू जाने नहीं देगी..