तो क्या हुआ मेरे हाथों की लकीरों में जो तेरा नाम नही,,
चल सकूं चार कदम तेरे हाथों को थाम कर, मेरी किस्मत मैं वो शाम नही,,
मैने बस तुझे मांगा है दुआओं में अपनी, तेरे सिवा मेरे कोई अरमान नही, कोई आरजू नही,
वो लिख देगा तुझे एक न एक दिन तकदीर मैं मेरे,,
आखिर वो खुदा है उसकी क्या मजबूरी, वो तो कोई इंसान नही है।।
चल सकूं चार कदम तेरे हाथों को थाम कर, मेरी किस्मत मैं वो शाम नही,,
मैने बस तुझे मांगा है दुआओं में अपनी, तेरे सिवा मेरे कोई अरमान नही, कोई आरजू नही,
वो लिख देगा तुझे एक न एक दिन तकदीर मैं मेरे,,
आखिर वो खुदा है उसकी क्या मजबूरी, वो तो कोई इंसान नही है।।