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अब न मोहब्बत होगा फिर से

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अब न किसी से कभी लगाव होगा फिर से,
न ही कोई कभी पसंद आयेगा फिर से...

अब न किसी के लिए रातों को जागेंगे फिर से,
न ही कभी किसी को देख कर मुस्कुराएंगे फिर से

अब न किसी को अपना कहेंगे फिर से,
न ही कभी कोई इतना पास आयेगा फिर से..

अब न किसी का मेरे पर हक़ होगा फिर से,
न ही मैं किसी पर भी हक़ जताउंगा फिर से...

अब न किसी के लिए गुनगुनायेंगे फिर से,
न ही किसी के लिये कुछ लिखेंगे फिर से..

अब न उस रास्ते पर साथ जाएंगे फिर से,
न ही कभी उस मंजिल की तरफ मुड़कर देखेंगे फिर से

अब न वो खिलखिलाती सुबह होगी फिर से,
न ही कभी वो महकती शामें होंगी फिर से...

अब न दिल को तकलीफ होगी फिर से

न ही कभी मोहब्बत होगी फिर से...
 
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अब न किसी से कभी लगाव होगा फिर से,
न ही कोई कभी पसंद आयेगा फिर से...

अब न किसी के लिए रातों को जागेंगे फिर से,
न ही कभी किसी को देख कर मुस्कुराएंगे फिर से

अब न किसी को अपना कहेंगे फिर से,
न ही कभी कोई इतना पास आयेगा फिर से..

अब न किसी का मेरे पर हक़ होगा फिर से,
न ही मैं किसी पर भी हक़ जताउंगा फिर से...

अब न किसी के लिए गुनगुनायेंगे फिर से,
न ही किसी के लिये कुछ लिखेंगे फिर से..

अब न उस रास्ते पर साथ जाएंगे फिर से,
न ही कभी उस मंजिल की तरफ मुड़कर देखेंगे फिर से

अब न वो खिलखिलाती सुबह होगी फिर से,
न ही कभी वो महकती शामें होंगी फिर से...

अब न दिल को तकलीफ होगी फिर से

न ही कभी मोहब्बत होगी फिर से...
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अब न किसी से कभी लगाव होगा फिर से,
न ही कोई कभी पसंद आयेगा फिर से...

अब न किसी के लिए रातों को जागेंगे फिर से,
न ही कभी किसी को देख कर मुस्कुराएंगे फिर से

अब न किसी को अपना कहेंगे फिर से,
न ही कभी कोई इतना पास आयेगा फिर से..

अब न किसी का मेरे पर हक़ होगा फिर से,
न ही मैं किसी पर भी हक़ जताउंगा फिर से...

अब न किसी के लिए गुनगुनायेंगे फिर से,
न ही किसी के लिये कुछ लिखेंगे फिर से..

अब न उस रास्ते पर साथ जाएंगे फिर से,
न ही कभी उस मंजिल की तरफ मुड़कर देखेंगे फिर से

अब न वो खिलखिलाती सुबह होगी फिर से,
न ही कभी वो महकती शामें होंगी फिर से...

अब न दिल को तकलीफ होगी फिर से

न ही कभी मोहब्बत होगी फिर से...
बहुत खूब
नजाने क्यों थामे हाथ छूट जाती हैँ फिर से
चलते चलते कदम क्यों रुक जाती हैँ फिर से
 
बहुत खूब
नजाने क्यों थामे हाथ छूट जाती हैँ फिर से
चलते चलते कदम क्यों रुक जाती हैँ फिर से
Bahut khub ap toh shayari dadi nikli
 
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अब न किसी से कभी लगाव होगा फिर से,
न ही कोई कभी पसंद आयेगा फिर से...

अब न किसी के लिए रातों को जागेंगे फिर से,
न ही कभी किसी को देख कर मुस्कुराएंगे फिर से

अब न किसी को अपना कहेंगे फिर से,
न ही कभी कोई इतना पास आयेगा फिर से..

अब न किसी का मेरे पर हक़ होगा फिर से,
न ही मैं किसी पर भी हक़ जताउंगा फिर से...

अब न किसी के लिए गुनगुनायेंगे फिर से,
न ही किसी के लिये कुछ लिखेंगे फिर से..

अब न उस रास्ते पर साथ जाएंगे फिर से,
न ही कभी उस मंजिल की तरफ मुड़कर देखेंगे फिर से

अब न वो खिलखिलाती सुबह होगी फिर से,
न ही कभी वो महकती शामें होंगी फिर से...

अब न दिल को तकलीफ होगी फिर से

न ही कभी मोहब्बत होगी फिर से...
अच्छी कविता है...

चलो फिर से एक आशियाना बनाया जाए
मोहब्बत को एक नए रूप में खिलाया जाए।
 
सितारे जो दमकते हैं
किसी की चश्म-ए-हैराँ में
मुलाक़ातें जो होती हैं
जमाल-ए-अब्र-ओ-बाराँ में
ये ना-आबाद वक़्तों में
दिल-ए-नाशाद में होगी
मोहब्बत अब नहीं होगी
ये कुछ दिन बा'द में होगी
गुज़र जाएँगे जब ये दिन

ये उन की याद में होगी
 
मोहब्बत अब नहीं होगी ये कुछ दिन ब'अद में होगी
गुज़र जाएँगे जब ये दिन ये उन की याद में होगी
 
ना मोहब्बत ना दोस्ती के लिए ,
वक्त रुकता ही नही है किसी के लिए ,,
अपने दिल को ना दुःख दो यूं ही,,,
इस जमाने की कोई बेरूखी के लिए! वक्त के साथ साथ चलता रहे ,

यही बेहतर है आदमी के लिए
 
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अब न किसी से कभी लगाव होगा फिर से,
न ही कोई कभी पसंद आयेगा फिर से...

अब न किसी के लिए रातों को जागेंगे फिर से,
न ही कभी किसी को देख कर मुस्कुराएंगे फिर से

अब न किसी को अपना कहेंगे फिर से,
न ही कभी कोई इतना पास आयेगा फिर से..

अब न किसी का मेरे पर हक़ होगा फिर से,
न ही मैं किसी पर भी हक़ जताउंगा फिर से...

अब न किसी के लिए गुनगुनायेंगे फिर से,
न ही किसी के लिये कुछ लिखेंगे फिर से..

अब न उस रास्ते पर साथ जाएंगे फिर से,
न ही कभी उस मंजिल की तरफ मुड़कर देखेंगे फिर से

अब न वो खिलखिलाती सुबह होगी फिर से,
न ही कभी वो महकती शामें होंगी फिर से...

अब न दिल को तकलीफ होगी फिर से

न ही कभी मोहब्बत होगी फिर से...
Bohut khub bhai aur likho
 
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