तेरे तसव्वुर की सीढ़ियां जो मै चढ़ने लगा,
हर सुबह तेरी ही आयतें तो मैं पढ़ने लगा।
हर घड़ी हर पहर थी तेरी आरज़ू,
बेवजह ही सही पर तेरी ओर बढ़ने लगा।
रूठना मनाना सिलसिला था ना मेरा,
अब तेरे रूठने पे पत्त्तों सा झड़ने लगा।
अकेला बैठकर भी मैकशि में मदहोश था,
अब तेरे संग ज़िन्दगी को माला सी गढ़ने लगा।...