“ कुछ ऐसी भी बातें होती हैं ,
जो बरसात के सीले दिनों में ,
किसी गीले कपड़े सी ,
अक्सर आँगन की अलगनी पर लटकी ,
इंतज़ार करती रहती हैं ,
अपनी नमी के सूखने का
और
धीरे धीरे पीली पड़ जाती हैं ,
किसी
किताब में सूखी पीली पड़ी
याद सी ।
कुछ ऐसी भी बातें होती हैं ,
जो
घर की चौखट लांघ कर
बाहर...