कभी कभी मन अशांत सा रहता है, उलझा हुआ,
तब कोई बात अगर ग़ौर से भी सुनूँ तो भी समझ नही आती,
समझ नही आता की ख़ुद की चोट पे हँसू या रोऊ,
जी चाहता है तोड़ दूँ सड़क किनारे लगे हुए पोल के बल्ब,
और उठा के ढेला मार दूँ गली के कुत्तों को,
फटकार के भगा दूँ पड़ोस के बच्चों को जो गली में चीख़ते चिल्लाते खेल...