कहते हैं बंधनों के कई रूप होते हैं.. सात फेरो का बंधन, सात जन्मों का बंधन, जन्मों जन्मों का बंधन.. पर एक बंधन और भी होता है मन से मन का बंधन.. रेशम सा बहते नीर सा, हवाओं में बहता सा महकते इत्र सा.. बंधे एक ही डोर से मन से मन को, हर भीर में तलाश ति एक दूसरे को.. उस नाम को, उसके लिखे शब्दों को...