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Chat ZoZo - Forum

krishti
krishti
चाहत तों कुछ ऐसी थी...

मे शब्द बनु तों तू मेरा लब्ज बनजाओ
मैं तेरी इश्क़ हूँ तों तू मेरा
रब बनजाओ
इन लफ्जो पे तेरा नाम
जप बनजाए
तू पूजा तू दुवा तू मेरा सब बनजाओ
krishti
krishti
पर हुवा कुछ ऐसा..

तेरी चाहतो मे खुद से मैं बागी बन गइ
अपने ही खुशी का मैं
बर्बादी बन गईं
चली क्या गईं थी इश्क़की गली

देखलो कैसे आज मैं अभागी बन गईं
Rockzz
Rockzz
चाहत....
चाहत वो जो कभी खत्म न हो
चाहत वो जो बढ़ती ही जाए
चाहत वो जो हर मुश्किलों से टकराए
चाहत वो नहीं जो खुद ही भाग जाए।
Rockzz
Rockzz
खुद को बरबाद करना आसान है
बिगड़े को बनाना और मुश्किल है
निभाना तो उससे भी ज्यादा मुश्किल
और अभागा वो जो ये सब करके भी हार जाए।

तुम तो किस्मत वाली निकली...
जो चाहा किया...
जब मन आए लड़ लिया
सोचो उसका क्या जो रो भी ना पाया
आज भी किस्मत के सहारे चल दिया।
krishti
krishti
चाहतो का इंसाफ शब्दो मे मिलता हैँ,

कभी हकीकत मे भी इन्साफ
कीजिये
गर आप को गुनेगार हम लग रहे ये तों

कबूल हें हमें जो सजा देनी हैँ दीजिये
Rockzz
Rockzz
कभी तुमको गुनाहगार नहीं ठहराया
खता जो हुई, इल्जाम खुद पे लगाया,
इंसाफ के लिए तो हम इंतेज़ार में हैं
सजाए मौत दे दो, यही तलबगार है।
krishti
krishti
फिर ये सजाये किस बात की थी
जओ देखी थी क्या उसी ख्वाब की थी
इतना भी हक़ ना रहा क्या इन आँखो को

चुभने लगे फूल भी उन काटो को
Rockzz
Rockzz
सजा नहीं थी ये गुस्सा था
तुमने ठीक से देखा ही नहीं,
फूल को छोड़ कांटे देखती रही

तुमने तो हमें भी पहचाना नहीं।
krishti
krishti
कैसे पहचानती
चहरे थे अलगसी
बाते भी थी अलग से
मंजिल तों वही था पर

बनाया उसने रास्ते अलग सी :smoking:
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