तू रोया, हँसा, न्याय माँगता रहा,
अतीत की गठरी उठाए चलता रहा।
पर जो अभी है, वह चुप सा खड़ा,
कहता है, मैं न साक्षी, न कोई खुदा।
तेरे अपराध, तेरे पुण्य, सब तेरे हैं,
वह क्षण तो बस मौन में खरे हैं।
न उसने तेरा पक्ष सुना, न विपक्ष,
वह तो देखता है बस तेरा निस्पृह स्पर्श।
तू सोचता रहा, मैं कौन हूँ...